User:Sharda Monga

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" नेताजी जियाउद्दीन के भेस में ". अवश्य पढ़िए:- "नेताजी जियाउद्दीन के भेस में" लेखक श्री उत्तमचंद मल्होत्रा. १९३९/४० में नेताजी श्री सुभाष चन्द्र बोस कलकत्ता में अंग्रेजों की कैद से, भेस बदल कर भाग निकले, अफगानिस्तान के रास्ते से जर्मन सहायता पाने के लिए जर्मनी जाना था. शेर पिंजरे से भागा था. अँगरेज़ हैरान थे. नेताजी को अफगानिस्तान में स्थित जर्मन एम्बेसी से सम्पर्क करना था यह सब गुप्त रूप से करना था. इसमें काफी समय लग गया. बिना किसी की मदद के संभव न था. अफगानिस्तान में रह रहे, देश पर न्योछावर होने वाले, एक देशभगत, भारतीय व्यापारी, श्री उत्तमचंद मल्होत्रा की सहायता पाकर ही यह अति विकट काम संभव हो सका. उत्तमचंद मल्होत्रा का अंग्रेजों के विरुद्ध नेताजी की इसप्रकार सहायता करना अति जोखिम भरा काम था. नेताजी की सहायता करने के पश्चात् उन्हें अंग्रेजों के कोप का भागी बनना पड़ा, उन्हें कई वर्षों का कारावास का दंड भुगतना पड़ा. मल्होत्राजी ने अपने उस साहस व जोखिम भरे कार्य को "जियाउद्दीन के रूप में नेताजी" पुस्तक लिख कर देश को जानकारी दे कर चौंका दिया. स्व. उत्तमचंद मल्होत्रा मेरे सगे मामा थे. स्वतंत्रता सेनानियों में उनका नाम गिना जाता है. नजरबंदी से पलायन:नजरबंदी से निकलने के लिए सुभाषबाबू ने एक योजना बनायी। 16 जनवरी 1941 को वे पुलिस को चकमा देने के लिये एक पठान मोहम्मद जियाउद्दीन का भेष धरकर घर से भाग निकले। शरदबाबू के बडे़ बेटे शिशिर ने उन्हें अपनी गाड़ी से कोलकाता से दूर गोमोह तक पहुँचाया। गोमोह रेलवे स्टेशन से फ्रंटियर मेल पकड़कर वे पेशावर पहुँचे। पेशावर में उन्हे फॉरवर्ड ब्लॉक के एक सहकारी मियां अकबर शाह मिले। मियां अकबर ने उनकी मुलाकात कीर्ती किसान पार्टी के भगतराम तलवार से कराई। भगतराम तलवार के साथ में सुभाषबाबू पेशावर से अफ़्ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल की ओर निकल पडे़। इस सफर में भगतराम तलवार, रहमतखान नाम के पठान बने थे और सुभाषबाबू उनके गूंगे-बहरे चाचा बने थे। काबुल में सुभाषबाबू दो महिनों तक उत्तमचंद मल्होत्रा नामक एक भारतीय व्यापारी के घर में रहे। वहाँ उन्होंने पहले रूसी दूतावास में प्रवेश पाना चाहा। इस में नाकामयाब रहने पर उन्होंने जर्मन और इटालियन दूतावासों में प्रवेश पाने की कोशिश की। इटालियन दूतावास में उनकी कोशिश सफल रही। जर्मन और इटालियन दूतावासों ने उनकी सहायता की। आखिर में ओर्लांदो मात्सुता नामक इटालियन व्यक्ति बनकर सुभाषबाबू काबुल से निकलकर रूस की राजधानी मॉस्को होते हुए जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुँच गए। जय हिंद ...नेताजी सुभाष चन्द्र को सच्ची श्रद्धांजलि. `

स्वर्गीय श्री उत्तमचंद मल्होत्रा मेरे मामा -मेरी माँ के सगे बड़े भाई थे।
नेताजी के भारत-जर्मनी पलायन के दौरान, मेरे मामा ने काबुल में अपने घर में उन्हें आश्रय दिया था। नेताजी को मामा के घर ४३ दिन तक छिप कर रहना पड़ा था। सुभाषचंद्र की पलायन की खबरें अख़बारों में जोर शोर से छप रहें थीं। मानो शेर पिंजरे से भागा था। 'उनकी खबर देने वाले को बेशुमार रकम दी जाएगी।'
नेताजी के मामा के घर से चले जाने के बाद मामा के किसी ने दुश्मन ने लालच में आकर ब्रिटिश सरकार से यह भेद खोल दिया। इसकारण मामा को ब्रिटिश सरकार द्वारा चार साल की कैद की सजा हुई तथा उनका घर कुर्क कर दिया गया। मामी को बच्चों सहित अपने भाई के घर रह कर यह चार साल काटने पड़े ।
स्वर्गीय मामा श्री उत्तमचंद और उनके निकटतम परिवार के बारे में मैं निम्न सूचना दे रही हूँ: श्री उत्तमचंद मल्होत्रा -(जन्म-1910)- जन्मस्थान -पेशावर= उत्तर पश्चिम सीमान्त प्रदेश अविभाजित भारत- (Now Pakistan). निवास स्थान E-97 कालकाजी, नै दिल्ली , भारत मृत्यु- (1987) नई दिल्ली, दिल्ली, भारत
निकटतम परिवार :
पत्नी-रामो देवी- (1913 -2011)-पुत्री श्री लालचंद कपूर बेटियां:- पद्मा, (1930-2007), निम्मो-(निर्मल जॉली) (1933-1995), भप्पल (उषा) काकी,(उमा) बेबी,प्रवीण सिक्का, बब्बू मल्होत्रा पुत्र- सुभाष मल्होत्रा,E-97 कालकाजी, मैं अपने परिवार सहित रहते हैं।